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Sura 29
Aya 10
10
وَمِنَ النّاسِ مَن يَقولُ آمَنّا بِاللَّهِ فَإِذا أوذِيَ فِي اللَّهِ جَعَلَ فِتنَةَ النّاسِ كَعَذابِ اللَّهِ وَلَئِن جاءَ نَصرٌ مِن رَبِّكَ لَيَقولُنَّ إِنّا كُنّا مَعَكُم ۚ أَوَلَيسَ اللَّهُ بِأَعلَمَ بِما في صُدورِ العالَمينَ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

लोगों में ऐसे भी है जो कहते है कि "हम अल्लाह पर ईमान लाए," किन्तु जब अल्लाह के मामले में वे सताए गए तो उन्होंने लोगों की ओर से आई हुई आज़माइश को अल्लाह की यातना समझ लिया। अब यदि तेरे रब की ओर से सहायता पहुँच गई तो कहेंगे, "हम तो तुम्हारे साथ थे।" क्या जो कुछ दुनियावालों के सीनों में है उसे अल्लाह भली-भाँति नहीं जानता?