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Sura 30
Aya 28
28
ضَرَبَ لَكُم مَثَلًا مِن أَنفُسِكُم ۖ هَل لَكُم مِن ما مَلَكَت أَيمانُكُم مِن شُرَكاءَ في ما رَزَقناكُم فَأَنتُم فيهِ سَواءٌ تَخافونَهُم كَخيفَتِكُم أَنفُسَكُم ۚ كَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الآياتِ لِقَومٍ يَعقِلونَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) तुम्हारी ही एक मिसाल बयान की है हमने जो कुछ तुम्हे अता किया है क्या उसमें तुम्हारी लौन्डी गुलामों में से कोई (भी) तुम्हारा शरीक है कि (वह और) तुम उसमें बराबर हो जाओ (और क्या) तुम उनसे ऐसा ही ख़ौफ रखते हो जितना तुम्हें अपने लोगों का (हक़ हिस्सा न देने में) ख़ौफ होता है फिर बन्दों को खुदा का शरीक क्यों बनाते हो) अक्ल मन्दों के वास्ते हम यूँ अपनी आयतों को तफसीलदार बयान करते हैं