وَإِذا كُنتَ فيهِم فَأَقَمتَ لَهُمُ الصَّلاةَ فَلتَقُم طائِفَةٌ مِنهُم مَعَكَ وَليَأخُذوا أَسلِحَتَهُم فَإِذا سَجَدوا فَليَكونوا مِن وَرائِكُم وَلتَأتِ طائِفَةٌ أُخرىٰ لَم يُصَلّوا فَليُصَلّوا مَعَكَ وَليَأخُذوا حِذرَهُم وَأَسلِحَتَهُم ۗ وَدَّ الَّذينَ كَفَروا لَو تَغفُلونَ عَن أَسلِحَتِكُم وَأَمتِعَتِكُم فَيَميلونَ عَلَيكُم مَيلَةً واحِدَةً ۚ وَلا جُناحَ عَلَيكُم إِن كانَ بِكُم أَذًى مِن مَطَرٍ أَو كُنتُم مَرضىٰ أَن تَضَعوا أَسلِحَتَكُم ۖ وَخُذوا حِذرَكُم ۗ إِنَّ اللَّهَ أَعَدَّ لِلكافِرينَ عَذابًا مُهينًا
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और (ऐ रसूल) तुम मुसलमानों में मौजूद हो और (लड़ाई हो रही हो) कि तुम उनको नमाज़ पढ़ाने लगो तो (दो गिरोह करके) एक को लड़ाई के वास्ते छोड़ दो (और) उनमें से एक जमाअत तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपने हरबे तैयार अपने साथ लिए रहे फिर जब (पहली रकअत के) सजदे कर (दूसरी रकअत फुरादा पढ़) ले तो तुम्हारे पीछे पुश्त पनाह बनें और दूसरी जमाअत जो (लड़ रही थी और) जब तक नमाज़ नहीं पढ़ने पायी है और (तुम्हारी दूसरी रकअत में) तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपनी हिफ़ाज़त की चीजे अौर अपने हथियार (नमाज़ में साथ) लिए रहे कुफ्फ़ार तो ये चाहते ही हैं कि काश अपने हथियारों और अपने साज़ व सामान से ज़रा भी ग़फ़लत करो तो एक बारगी सबके सब तुम पर टूट पड़ें हॉ अलबत्ता उसमें कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि (इत्तेफ़ाक़न) तुमको बारिश के सबब से कुछ तकलीफ़ पहुंचे या तुम बीमार हो तो अपने हथियार (नमाज़ में) उतार के रख दो और अपनी हिफ़ाज़त करते रहो और ख़ुदा ने तो काफ़िरों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है