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Sura 6
Aya 151
151
۞ قُل تَعالَوا أَتلُ ما حَرَّمَ رَبُّكُم عَلَيكُم ۖ أَلّا تُشرِكوا بِهِ شَيئًا ۖ وَبِالوالِدَينِ إِحسانًا ۖ وَلا تَقتُلوا أَولادَكُم مِن إِملاقٍ ۖ نَحنُ نَرزُقُكُم وَإِيّاهُم ۖ وَلا تَقرَبُوا الفَواحِشَ ما ظَهَرَ مِنها وَما بَطَنَ ۖ وَلا تَقتُلُوا النَّفسَ الَّتي حَرَّمَ اللَّهُ إِلّا بِالحَقِّ ۚ ذٰلِكُم وَصّاكُم بِهِ لَعَلَّكُم تَعقِلونَ

फ़ारूक़ ख़ान & अहमद

कह दो, "आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे रब ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबन्दियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्य वहार करो और निर्धनता के कारण अपनी सन्तान की हत्या न करो; हम तुम्हें भी रोज़ी देते है और उन्हें भी। और अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हो। और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो। यह और बात है कि हक़ के लिए ऐसा करना पड़े। ये बाते है, जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो।