22يَومَ يَرَونَ المَلائِكَةَ لا بُشرىٰ يَومَئِذٍ لِلمُجرِمينَ وَيَقولونَ حِجرًا مَحجورًاफ़ारूक़ ख़ान & अहमदजिस दिन वे फ़रिश्तों को देखेंगे उस दिन अपराधियों के लिए कोई ख़ुशख़बरी न होगी और वे पुकार उठेंगे, "पनाह! पनाह!!"