55وَإِذا سَمِعُوا اللَّغوَ أَعرَضوا عَنهُ وَقالوا لَنا أَعمالُنا وَلَكُم أَعمالُكُم سَلامٌ عَلَيكُم لا نَبتَغِي الجاهِلينَफ़ारूक़ ख़ान & अहमदऔर जब वे व्यर्थ की बात सुनते है तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते है कि "हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म है। तुमको सलाम है! ज़ाहिलों को हम नहीं चाहते।"