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Sura 30
Aya 52
52
فَإِنَّكَ لا تُسمِعُ المَوتىٰ وَلا تُسمِعُ الصُّمَّ الدُّعاءَ إِذا وَلَّوا مُدبِرينَ

फ़ारूक़ ख़ान & नदवी

(ऐ रसूल) तुम तो (अपनी) आवाज़ न मुर्दो ही को सुना सकते हो और न बहरों को सुना सकते हो (ख़ुसूसन) जब वह पीठ फेरकर चले जाएँ