وَإِذ تَقولُ لِلَّذي أَنعَمَ اللَّهُ عَلَيهِ وَأَنعَمتَ عَلَيهِ أَمسِك عَلَيكَ زَوجَكَ وَاتَّقِ اللَّهَ وَتُخفي في نَفسِكَ مَا اللَّهُ مُبديهِ وَتَخشَى النّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخشاهُ ۖ فَلَمّا قَضىٰ زَيدٌ مِنها وَطَرًا زَوَّجناكَها لِكَي لا يَكونَ عَلَى المُؤمِنينَ حَرَجٌ في أَزواجِ أَدعِيائِهِم إِذا قَضَوا مِنهُنَّ وَطَرًا ۚ وَكانَ أَمرُ اللَّهِ مَفعولًا
फ़ारूक़ ख़ान & नदवी
और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम उस शख्स (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर खुदा ने एहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) एहसान किया था कि अपनी बीबी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौज़ियत में रहने दे और खुदा से डेर खुद तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको (आख़िरकार) खुदा ज़ाहिर करने वाला था और तुम लोगों से डरते थे हालॉकि खुदा इसका ज्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो ग़रज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक़ दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया ताकि आम मोमिनीन को अपने ले पालक लड़कों की बीवियों (से निकाह करने) में जब वह अपना मतलब उन औरतों से पूरा कर चुकें (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे और खुदा का हुक्म तो किया कराया हुआ (क़तई) होता है